समाधिस्थ उस स्थितप्रज्ञ के, लक्षण कैसे होते हैं ।
केशव, वे बात किस तरह करते, कैसे रहते, चलते हैं ॥
मन की सभी कामनाओं का, जब वे त्याग कर देते हैं ।
अपने आत्म में तृप्त हो रहते, स्थितप्रज्ञ उन्हें तब कहते हैं ॥
दुःख में जो उद्विग्न न हों, स्पृहा से रहित सुख में रहते ।
हो राग नहीं, भय क्रोध न हो, स्थितप्रज्ञ उन्हें तब हैं कहते ॥
शुभ पाकर होते नहीं हर्षित, अशुभ से द्वेष नहीं करते ।
अनासक्त सर्वत्र जो रहते, स्थितप्रज्ञ उन्हें ही हैं कहते ॥
अपनी इन्द्रियाँ विषयों से, जो उसी प्रकार हटाते हैं ।
जैसे कछुआ अंग समेटे, स्थितप्रज्ञ कहलाते हैं ॥
विषयों के हट जाने पर भी, उनके रस में रहती रुचि ।
परम तत्त्व दर्शन करने पर, उसमें भी होती अरुचि ॥
ये इन्द्रियाँ, किन्तु हे अर्जुन, स्वभाव से उग्र ही होती हैं ।
विवेकशील व्यक्ति का मन भी, बलपूर्वक हर लेती हैं ॥
इन सबको संयम में लाकर, जो मेरे परायण रहते हैं ।
ये इन्द्रियाँ जिनके वश में हैं, स्थितप्रज्ञ उन्हें ही कहते हैं ॥
चिंतन विषयों का करने से, उनमें होती है आसक्ति ।
आसक्ति से बनती है कामना, उससे क्रोध की उत्पत्ति ॥
सम्मोह क्रोध से होता है, सम्मोह से होता स्मृतिनाश ।
उससे बुद्धि हो जाती नष्ट, जिससे होता है पूर्ण विनाश ॥
लेकिन जो संयमी होते हैं, जिनकी सब इन्द्रियाँ वश में हैं ।
विषयों के सेवन से भी वे, प्राप्त प्रसन्नता करते हैं ॥
प्रसाद प्राप्त कर लेने पर, मुक्ति दुःख से मिल जाती है ।
हो चित्त प्रसन्न, शीघ्र ही उनकी, बुद्धि स्थित हो जाती है ॥
जिसने मन को नहीं जीता है, भला उसको बुद्धि हो प्राप्त कहाँ ।
नहीं ध्यान करे, न मिले शान्ति, जो अशांत है, उसको सुख है कहाँ ॥
जैसे जल में बहती नाव को, वायु हर ले जाती है ।
जिस इन्द्रिय में है रमता मन, वह बुद्धि हर ले जाती है ॥
इसलिए विषयों से जो अपनी, इंद्रियों को वश कर लेते हैं ।
महाबाहो, जिनके वश में मन, स्थितप्रज्ञ उन्हें ही कहते हैं ॥
जो रात्रि सभी प्राणियों हेतु, उसमें वे संयमी जागते हैं ।
जिसमें जागते रहते प्राणी, रात्रि उसे वे मानते हैं ॥
परिपूर्ण समुद्र में जैसे नदियाँ, क्षोभ रहित हो करें प्रवेश ।
करती प्रवेश कामना जिसमें, वह शान्ति पाए, उसे नहीं क्लेश ॥
सभी कामनाओं को त्यागकर, जो स्पृहा से रहित रहते ।
नहीं ममता और अहंकार हो, शान्ति प्राप्त वो ही करते ॥
हे पार्थ, ये ब्राह्मी स्थिति है, इसको पाकर कभी मोह न हो ।
अन्तकाल में भी स्थित हो इसमें, निर्वाण प्राप्ति निश्चित हो ॥
[Source: Geeta Chapter - 2, सांख्य योग, Verse: 54-72]
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