Sunday, April 1, 2018

कृष्णार्जुन संवाद - 9

अर्जुन तुम ईर्ष्या से रहित, तुम्हें गूढ़ ज्ञान बतलाता हूँ |
जिसे जान कर मुक्ति मिले, मैं वह रहस्य समझाता हूँ ||

जिसको सुन होते हैं पवित्र , यह विद्या है सबसे उत्तम |
जो गोपनीय हैं उनमें भी, इसका स्थान है सर्वप्रथम ||

धर्म के अनुसार यह, प्रत्यक्ष अनुभव योग्य है |
अनुसरण इसका है सरल, उत्तम है, अव्यय बोध है ||

इसमें श्रद्धा से जो विहीन, वे मुझको जान न पाते हैं |
हे अर्जुन ऐसे पुरुष पुनः, इस मृत्युलोक में आते हैं ||

जग समस्त में हे अर्जुन, अव्यक्त रूप है व्याप्त मेरा |
मुझमें स्थित सब प्राणी पर, उनमें नहीं निवास मेरा ||

सर्वत्र चलने वाली वायु, व्योम में रहती यथा |
उसी भांति सभी प्राणी,  स्थित हैं मुझ में सर्वदा ||

कल्प अंत में सब प्राणी , मेरी प्रकृति में होते लीन |
नया कल्प आरम्भ हो तब, करता हूँ मैं रचना नवीन  ||  

जैसा स्वभाव होता उनका, मैं पुनः उन्हें करता हूँ सृजन |
उदासीन, आसक्ति रहित इन , कर्मों से नहीं हो बंधन ||

मेरी अध्यक्षता में प्रकृति,  चराचर विश्व करे निर्मित |
पुनः पुनः इसी कारण, होता यह जग है परिवर्तित ||

मनुष्य तन आश्रित जो मेरे, परम भाव को जान न पाते |  
सभी प्राणियों के ईश्वर को,  अर्जुन, मूर्ख समझ नहीं पाते ||