Sunday, February 23, 2014

हे मातृभूमि

हे मातृभूमि, हे जन्मभूमि, अनुपम तुझसे यह नाता है ।
तेरी रज को अपने शीश लगा, तेरा लाल परम सुख पाता है ॥

हे देवभूमि, हे पुण्यभूमि, तेरे चरणों में वंदन है ।
तेरी सुगंध है जीवन में, तुझे कोटि कोटि अभिनन्दन है ॥

हे दिव्यभूमि, हे कर्मभूमि, तुझसे ही जीवन में रस है ।
तू अक्षय स्रोत प्रेरणा का, तेरी प्रसन्नता में यश है ॥

हे कृपामूर्ति, हे दयामूर्ति, उपकार हैं माँ अगणित मुझ पर ।
तेरी सेवा ध्येय है जीवन का, तेरा ऋण न चुका सकता अणु भर ॥

Saturday, February 8, 2014

राहुल अर्णब संवाद

संसद के भीतर राहुल को जब, बीत गया था एक दशक ।
क्या है समर्थ कुछ करने में वह, लोगों के मन में था शक ॥

राहुल से हाथ मिला कर अर्णब, मन ही मन में मुस्काए ।
इतने दिन तक कहाँ थे बन्धु, याद अचानक हम आए ॥

प्रेस से मैं पहले भी मिला हूँ, टीवी पर है पहली बार ।
दल के भीतर कार्य हूँ करता, ध्यान उसी में लगा था यार ॥

कठिन विषय से तुम बचते हो, कहीं यह बात तो सत्य नहीं ।
कठिन विषय मुझको पसंद हैं, आपकी बात में तथ्य नहीं ॥

राहुल पहला प्रश्न तो यह है, पी एम पद से क्यों घबराते ।
सिस्टम तो एम पी चुनता है, एम पी चुनकर पी एम बनाते ॥

अपना पी एम घोषित करना, संसद राय को जाने बिना ।
नहीं लिखा यह संविधान में, इसीलिए नहीं हमने चुना ॥

लेकिन पिछली बार तो राहुल, घोषित तुमने किया ही था ।
तब तो पी एम पहले से था, परिवर्तन का प्रश्न न था ॥

कांग्रेसगण तो तुम्हें चुनेंगे, संशय किंचित इसमें नहीं ।
जो रीति है लोकतंत्र की, वही किया है जो है सही ॥

लेते निर्णय कई लोग जब, तब ही लोकतंत्र बढ़ता ।
संविधान में स्पष्ट लिखा है, उसी का मैं आदर करता ॥

लोगों का कहना है राहुल, मोदी से डरते हो तुम ।
हार के भय से व्याकुल होकर, करते नहीं सामना तुम ॥

मोदी से भिड़ना नहीं चाहते, कहीं पराजय ना हो जाय ।
कांग्रेस के दिन ठीक नहीं हैं, लोगों की है ऐसी राय ॥

इसका उत्तर समझने हेतु, समझना होगा राहुल को ।
राहुल के दिन कैसे कटे हैं, भय किस बात का है उसको ॥

जब छोटे बच्चे थे, अर्नब, तब सोचा होगा तुमने ।
'मैं भी कुछ करना चाहता हूँ', पत्रकार पर तुम क्यों बने ॥

मुझसे ही तुम प्रश्न हो करते, पत्रकारिता मुझे प्रिय है ।
उत्तर मेरे प्रश्न का दो तुम, मोदी से लगता भय है ?

प्रश्न का उत्तर अवश्य दूँगा, पर पूछा है कुछ मैंने ।
क्यों देखे थे छोटी आयु में, पत्रकारिता के सपने ॥

सोचा पत्रकार बनना है, आधा अधूरा क्या बनना ।
राहुल तुम हो राजनीति में, आधा नेता क्या बनना ॥

तुमने उत्तर नहीं दिया है, अर्नब, पर मैं देता हूँ ।
कैसे सोचता राहुल गांधी, परिचय उसका देता हूँ ॥

बालक था मैं, मेरे पिता को, राजनीति में आना पड़ा ।
इस सिस्टम से लड़ते रहे वे, प्राण भी अपने गँवाना पड़ा ॥

दादी जेल में जाती देखी, मृत्यु भी देखी उसकी ।
खोया, जिसके खोने का भय, अब मुझको भय तनिक नहीं ॥

मेरा एक इरादा यही है, मेरे हृदय की पीड़ा है ।
अर्जुन की दृष्टि की भांति, ध्येय यही बस मेरा है ॥

मुझको केवल यह दिखता है, सिस्टम में परिवर्तन हो ।
मोदी आदि गौण विषय हैं, आवश्यक नहीं कि वर्णन हो ॥

[This is based on first few minutes of Rahul's Interview with Arnab]

Friday, February 7, 2014

कृष्णार्जुन संवाद - 6.2

वायुरहित स्थान में जैसे, दीप नहीं विचलित होता ।
संयत मन वाला वह योगी, आत्मयोग में स्थित होता ॥

मन निरुद्ध है योग के द्वारा, विषयों से उपराम हुआ ।
आत्मा से आत्मा का दर्शन, आत्मा में ही तृप्त हुआ ॥

इन्द्रियों से जो ग्राह्य नहीं है, बुद्धिग्राह्य उस सुख में स्थित ।
योगी नहीं होता है विचलित, सदा तत्त्व में रहता स्थित ॥

जिसको पाकर अन्य कोई भी, लाभ मानता अधिक नहीं ।
जिसमें स्थित हो, भारी दुःख भी, विचलित करता उसे नहीं ॥

उस विद्या को कहते योग, दुःख के संयोग को हरती जो ।
धैर्य रखो मन में, निश्चय से, उसका दृढ़ अभ्यास करो ॥

संकल्प से उद्भव होता जिनका, सभी कामनाओं को तजो ।
सभी ओर से, सभी इन्द्रियाँ, मन के द्वारा वश में करो ॥

धैर्ययुक्त बुद्धि के द्वारा,  धीरे धीरे शमन करो ।
आत्मा में मन स्थित कर के, कुछ भी चिंतन नहीं करो ॥

अस्थिर चंचल, यह मन जाता, जहाँ जहाँ दौड़ कर के ।
करो उसे आत्मा में स्थापित, वहाँ वहाँ निग्रह कर के ॥

ब्रह्मभाव से युक्त है जो, कल्मष हैं जिसके दूर हुए ।
शांत रजोगुण हुआ है जिसका, उत्तम सुख है मिले उसे ॥

मन शांत हुआ जिस योगी का, रहता है सदा योग में लीन ।
ब्रह्मप्राप्ति सरल है उसको, उत्तम सुख में हो लवलीन ॥

अपने को सभी प्राणियों में, अपने में सभी प्राणियों को ।
सर्वत्र देखते समदर्शी, हैं युक्त योग से होते जो ॥

सबको जो मुझमें है देखता, मुझको देखता है सबमें ।
वह मेरे लिये अदृश्य नहीं, नहीं उसके लिये अदृश्य हूँ मैं ॥

एकत्व का आश्रय लेते जो, सबमें स्थित, मुझको भजते ।
सभी अवस्था में रहकर भी , योगी मुझमें ही रहते ॥

जिनको सब जीवों के सुख दुःख, दिखते हैं अपने ही समान ।
मेरे मत अनुसार, हे अर्जुन, योग में श्रेष्ठ तू उनको जान ॥

[Source: Geeta Chapter - 6, Verse: 19-32]

कृष्णार्जुन संवाद - 6.1                         कृष्णार्जुन संवाद - 6.3