Sunday, December 25, 2016

आठ नवम्बर

तिथि आठ थी आठ मास था, आठ नवम्बर समय था आठ ।
बुरा काल उन हेतु हुआ जो, काले धन पर करते ठाठ ॥

एक सहस्र रुपये की मुद्रा, वैधता उसकी हुई समाप्त ।
रुपये पाँच सौ रूप बदलकर, करने होंगे फिर से प्राप्त ॥

चकित हुई, जनता नहीं समझी, इस निर्णय का अर्थ है क्या?
सारा परिश्रम, सारी कमाई, इन रुपयों की, व्यर्थ है क्या?

कोई न लेगा रुपये अब ये, बैंक में अपने जाना है ।
जितना धन इस राशि का है, उसको जमा कराना है ॥

बंद रहेंगे बैंक एक दिन, एटीएम का किसे पता ।
कैसे खरीदें दूध और सब्जी, सभी कौतुहल रहे जता ॥

धनतेरस थी दस दिन पहले, सोना फिर से चमक उठा ।
घड़ियों से भर गई कलाई, आई-फोन भी गरज उठा ॥

जिनके घर शादी थी उनके, मुँह पे उदासी छाई थी ।
छोड़ के घर के काम सभी, बैंक में लाइन लगाई थी ॥

उठो सुबह और चलो एटीएम, रखनी देश की गरिमा है ।
सौ सौ रुपये के नोट मिलेंगे, लेकिन उनकी सीमा है ।

नहीं मिले तो कोई नहीं पर, योगासन तो हो ही गया ।
मिले पुराने मित्र पंक्ति में,  मन आह्लादित हो ही गया ॥

जो वस्तुएँ नहीं आवश्यक, उनका तो अब प्रश्न नहीं ।
जो रुपये हैं, उन्हें बचा लो, करना कोई जश्न नहीं ॥

बाल बढ़े थे, काँच में देखा, सोचा इन्हें कटाना है ।
मन पर संयम, धीरज बाँधा, पहले रुपये बचाना है ॥