हताशा है निराशा है, क्या कभी दिन ये बदलेंगे ।
नहीं कोई निशाँ दिखता, जो बिगड़े हैं वे सुधरेंगे ।।
भले ही लाख अपने को, भुलावा दें दिलासा दें ।
जो पैरों पे कुल्हाड़ी दे, वो दुःख से कैसे उबरेंगे ।।
समझ आता नहीं कैसे, ये हालत हो गयी इन की ।
न कोई दीखता काबिल, कहें जिससे दशा मन की ।।
भुलाए भूल ना पाते, यही वे लोग हैं प्यारे ।
जिनके ऊपर भरोसा था, रखेंगे लाज वतन की ।।
दोष दें भी तो किसको दें, सभी कहने को अपने हैं ।
शत्रु भी जब इस मेले में, मित्र का वेश पहने हैं ।।
सही है क्या गलत है क्या, नहीं कुछ फर्क दिखता है ।
उजाला हो तो मालुम हो, सर्प हैं या फिर गहने हैं ।।
जब अवसर था नहीं चेते, शर्म से सिर ये झुकता है ।
जो अपने देश को लूटे, नहीं अब उनसे रिश्ता है ।
जगाने पर नहीं जागे, रहे सोये खयालों में ।
उठो पगलों, धूप छाई, चलना अभी लंबा रस्ता है ।।