ब्रह्माण्ड के विस्तार में, अणु की कहानी खो गई ।
कितने अणु हैं मिट गए, गुम उनकी वाणी हो गई ॥
पर ये अणु आये कहाँ से, गुम किधर ये हो गए ।
क्यूँ ये अचानक जाग कर के, फिर अचानक सो गए ॥
कुछ अणु मिलकर बड़े, रोशन सितारे हो गए ।
कुछ सितारे टूट कर, अणु ढेर सारे हो गए ॥
जिस खोज में ये भटकते, वह लक्ष्य इनका है कहाँ ।
आरम्भ जिसका है नहीं, हो अंत उसका फिर कहाँ ॥
क्या जानते हैं ये अणु, और जान कर के मस्त हैं ।
अथवा नहीं हैं जानते, और भय से ये भी त्रस्त हैं ॥
सीख ली है नृत्य की, अणु ने कहाँ से क्या पता ।
ब्रह्माण्ड में है राज कितने, कौन है सकता बता ॥
No comments:
Post a Comment