48 डिग्री धूप ने देखो,
कैसा कहर बरपाया है।
तपे हुए पंखों को लेकर,
कबूतर घर में आया है ॥
राहत थोड़ी मिली प्राणी को,
चैन की सांस उसे आई ।
घर के अन्दर उसने पाई,
मौसम में कुछ ठंडाई ॥
सोचा बाहर धूप है ज्यादा,
थोड़ी देर मैं यहीं रहूँ ।
गर्म हवाएं सहकर आया,
ठंडी हवा में सांस भरूँ ॥
शीतल जल थोड़ा मिल जाए,
कुछ ऐसा मैं करूँ उपाय ।
यह अवसर किस्मत से पाया,
खाली हाथ न जाने पाय ॥
देख रसोई, मुंह में पानी,
रोज मैं दूर भटकता हूँ ।
इतना भोजन हाथ लगा है,
आज कुछ तूफानी करता हूँ ॥
अति लोभ विनाश की जड़ है,
ज्ञानी जन देते उपदेश ।
अज्ञानी श्रीसांत भी अपने,
कर्मों से देते सन्देश ॥
प्यास बुझाई, क्षुधा मिटाई,
प्यास बुझाई, क्षुधा मिटाई,
अन्तःकरण भी तृप्त हुआ ।
इतना सुख था कभी न पाया,
मन प्रसन्नता युक्त हुआ ॥
चहक उठा, मन महक उठा,
स्वर गूंजे, माधुर्य भरे ।
मस्ती छाई, चाल भी बदली,
धूप से अब काहे को डरे ॥
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