Thursday, November 8, 2018

पटाखे

हवा में धूल ज्यादा है, साँस लेना भी भारी है |
तुम्हारी ही वजह से है, तुम्हारी जिम्मेदारी है ||

ख़ुशी मिलती बहुत तुमको, फुलझड़ी को घुमाने से |
जो ऊपर दूर तक जाए, राकेट ऐसा चलाने से ||

जो अंगारों को बरसाए, धूम ऐसी मचाने से |
बदलते सुर, जो मटके में, पटाखे वे चलाने से ||

सूतली से जो बाँधे हैं, `हरे` वो बम चलाने से |
डाल गोबर में मुर्गा छाप, परखच्चे दूर उड़ाने से ||

जो वर्षा अग्नि की करते, उन्हें क्रमबद्ध चलाने से |
जो घर्षण से रहित लगते, चक्र ऐसे घुमाने से ||

जो भीषण गूँज करते हैं, अगरबत्ती लगाने से |
सुबह की नींद खुल जाए, नाद ऐसा बजाने से ||

क्या हुआ जो, एक दिन ही, वर्ष में तुम चलाते हो |
सहन हम से नहीं होता, शोर इतना मचाते हो ||

हमारा प्यारा कुत्ता भी, नहीं यह देख पाता है |
क्रूर तुम हो, पशु का ध्यान, तुम्हें किंचित न आता है ||

प्रदूषण पर असर कितना, नहीं साबित अभी यह है |
परन्तु हम प्रभावित हैं, अतः अब रोक तो तय है ||

फसल के ठूँठ जलाता जो,  न कोई रोक पाता है |
पटाखे को चलाया जो, तो लज्जा में नहाता है ||

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