Thursday, March 22, 2018

धूल पोंछ दो

धूल पोंछ दो, पर यह सोचो,
क्या इससे बेहतर नहीं होता, चित्र बनाते, पुस्तक लिखते
व्यंजन की तैयारी करते, पौधों में जल सिंचन करते 
इच्छा या आवश्यकता है, मन में इसका चिंतन करते ||

धूल पोंछ दो, पर यह सोचो,
अभी शेष नदियों में तैरना, नभ को छूते पर्वत चढ़ना
मनभावन संगीत को सुनना, पुस्तक कितनीं शेष है पढ़ना
समय अल्प, मित्रता संजोना, जीवन में आगे है बढ़ना ||

धूल पोंछ दो, पर यह सोचो,
सूर्य धूप अपनी बरसाए, चले पवन, बाल लहराए
हिमवर्षा से श्वेत हुआ नभ, जल वृष्टि भूमि महकाए
प्रस्तुत है सम्पूर्ण विश्व पर, बीता समय पुनः नहीं आए  ||

धूल पोंछ दो, पर यह सोचो,
वृद्धावस्था इक दिन होगी, होगी सरल सुखद, नहीं निश्चित
जब प्रस्थान जगत से होगा, निःसंदेह, जाना है निश्चित
प्रकृति अपना चक्र चलाए, तुम्हें धूल में होना मिश्रित ||

Inspired from "Dust if you must" by Rose Milligan

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