Thursday, January 3, 2013

बढे चलें हम

     
     सरल नहीं यह कार्य कठिन है 
         हम पर लगी हैं सभी निगाहें ।
     मीलों दूर है मंजिल अपनी 
         नयी बनानी होंगी राहें ।।

     धूमिल नभ है मार्ग है दुस्तर
         बाधाएं होंगी यह तय है ।
     सहनशीलता धैर्य बढ़ा लो 
         विपदाएं आने का भय है ।।

     विगत सभी त्रुटियों से बचकर 
         अहंकार ग्लानि को तजकर ।
     नए वर्ष में नयी उमंगें 
         नव संकल्पशक्ति को भरकर ।।

     साहसयुक्त बुद्धिकौशल से
         अथक परिश्रम पूर्ण लगन से ।
     ध्येय प्राप्ति को बढे चलें हम 
         अविचल निष्ठा पुलकित मन से ।।

                     श्यामेंद्र सोलंकी 

1 comment:

  1. The metaphor in the second para for the harsh realities that pose obstacles in our life is really vivid. And the last para says how to overcome them...very inspiring.

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