कविता संग्रह
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कृष्णार्जुन संवाद
Tuesday, November 13, 2018
नदी के पार
बह रही है द्रुत गति से, धार निर्मल नीर की |
उस ओर है जाना कठिन, अब है परीक्षा वीर की ||
जल की तरंगें उछलती, भिड़ती, लगे संग्राम है |
व्यतिकरण लेता रूप नाना, सतत है, अविराम है ||
[To be continued...]
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